SAVITRIBAI JYOTIBA PHULE # SPEECH (सावित्रीबाई फूले : जीवन परिचय , भाषण )


सावित्रीबाई ज्योतिबाफुले
( SAVITRIBAI JYOTIBA PHULE )

परम आदरणीय अध्यक्ष महोदय, मुख्य अतिथि महोदय, विशिष्ट अतिथि गण,उपस्थित समस्त जागरूक श्रोतागण व कार्यक्रम के आयोजक गण, आप सभी को मैं ...............................प्रणाम करता हूं I अभिवादन करता हूं I
आज जिस  महान आत्मा की स्मृति में इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है उस देवी तुल्य सावित्रीबाई फुले को मैं शत-शत नमन करता हूंI इस महान आत्मा का इस धरा पर अवतरण नया गांव, जिला सतारा, महाराष्ट्र में 3 जनवरी 1831 को हुआI उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम खान्ड़ोजी नरेश पाटिल था I मात्र 9 वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह 13 वर्षीय ज्योतिबा राव से कर दिया गया I इनकी अपनी कोई औलाद नहीं थी I उन्होंने एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र यशवंतराव को गोद लिया I
अब तक इन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की थी I इनकी प्राथमिक शिक्षा शादी के उपरांत ज्योतिबा फुले के घर पर ही संपन्न हुई I आगे की शिक्षा ज्योतिबा राव के मित्रों सखाराम, यशवंतराव परांजपे और केशव शिवराम भावलकर के सहयोग से संपन्न हुई I अध्यापक शिक्षण डिप्लोमा इन्होंने अहमदनगर पुणे से किया I
1848 में प्रथम भारतीय महिला अध्यापिका के रूप में अध्यापन कार्य शुरू किया I यहीं से शुरू हुआ संघर्ष I समाज के तथाकथित ठेकेदारों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया I उन्होंने ब्राह्मण ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि शूद्रों के लिए शिक्षा वर्जित है I ऊपर से शूद्रों की बालिकाओं को शिक्षित करने का कार्य बिल्कुल भी उनके गले नहीं उतर रहा था I यहां तक कि खुद शुद्र लोगों ने भी उच्च जाति के लोगों द्वारा भड़काया जाने पर विरोध शुरू कर दियाI विरोध स्वरूप उन्हें गालियां दी जाती I उन पर गोबर फेंका जाता I यहां तक कि उन पर पत्थर भी फेंके जाने लगे I लेकिन दृढ़ निश्चय सावित्रीबाई फूले हार मानने वाली नहीं थी यहां तक कि उनके ससुर यानी ज्योतिबा फुले का पिता भी उनके विरोध में उतर आया और इन दोनों को घर से निष्कासित कर दिया I लेकिन वह कहां हार मानने वाले थे ? क्योंकि वे जानते थे .....
मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है,
हर पहलू जिंदगी का इम्तिहान होता है ,
डरने वाले को मिलता नहीं कुछ जिंदगी में,
लड़ने वालों के कदमों में जहांन होता है I
1849 में घर से निकाले जाने पर ज्योतिबा के मित्र उस्मान शेख ने उनकी मदद की I वह शेख के घर में रहने लगे I वहां फातिमा बेगम शेख  सावित्रीबाई जी की सहयोगी के रूप में मिली और दोनों ने मिलकर आगे स्नातक की पढ़ाई की I दोनों ने 1849 में ही शेख के घर में बालिका विद्यालय खोला I फातिमा बेगम पहली महिला मुस्लिम अध्यापिका बनी I
 1850 में सावित्रीबाई और ज्योतिबा ने दो शैक्षिक ट्रस्ट बनाए I लड़कियों का स्कूल खोलना चाहते थे पर किसी ने जगह नहीं दी I पैसे थे नहीं जो वह अपना भवन बनाते I लेकिन जहां चाह,  वहां राह I
 आंखों में मंजिलें थी गिरे और संभलते रहे,
 आंधियों में कहां दम था चिराग हवा में भी जलते रहे I
इस वक्त उनकी मदद को आगे आए लाहूजी राघ रावत और रनबा  महार I उन्होंने इनकी मदद की और अपनी बिरादरी की बालिकाओं को पढ़ाने के लिए भी तैयार किया और फिर शुरू हुआ इनकी सफलता का सफर I फिर  एक के बाद एक 18 बालिका विद्यालय पुणे शहर में खोल डाले I अब शिक्षा का महत्व लोगों के समझ में आने लगा I दूरदर्शिता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज से लगभग 170 वर्ष पहले 1853 में उन्होंने बाल हत्या प्रतिबंधक गृह खोला I जिसमें बलात्कार पीड़ित महिलाओं और विधवाओं को शरण दी जाती थी I ताकि वहां वे अपने बच्चों को जन्म दे सके और उन्हें अपनी व   नवजनित बच्चों की जीवन लीला समाप्त नहीं करनी पड़े I
 इसी तरह से एक विधवा ब्राह्मणी को आत्महत्या करने से बचाया और उसके बच्चे यशवंतराव को खुद गोद ले लियाI जो कि बाद में पढ़ लिखकर डॉक्टर बना I
1897 में जब प्लेग महामारी फैली तो इन मां बेटों ने लोगों को बचाने की भरपूर कोशिश की और इसी सामाजिक सेवा में वे खुद भी प्लेग की शिकार हो गई और 10 मार्च 1857 को इस दुनिया से विदा हो गई I वह एक लेखक व कवि भी थी I उनकी रचनाओं में काव्य फुले 1854, बावन काशी सुबोध रत्नाकर 1892 किसान का कोड़ा प्रसिद्ध है I
उन्होंने एक POEM –GO GET EDUCATION भी लिखि, जो काफी पॉपुलर हुईI
उन्होंने बाल विवाह व  छुआछूत का पुरजोर विरोध किया लेकिन वह विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में थीI  आज जरूरत है उनके नक्शे कदम पर चलने की I
 क्या उन्होंने ऐसी ही शिक्षा की ही कल्पना की थी?  समाज को कन्या भ्रूण हत्या की बीमारी लगी है I पहले तो बच्चियों  को पैदा ही नहीं होने दे रहे और अगर ऊपर वाले की कृपा से पैदा हो भी गई तो मानव की शक्ल में जगह-जगह नर पिशाच घूम रहेहै I वहीं इन  बालिकाओं का जीवन बर्बाद करने पर तुले हुए हैंI  अखबार की सुर्खियों में यही  देखने और सुनने को  मिलता है I जरूरत है-- बच्चों को अच्छे संस्कार देने की I हम बच्चियों  पर तो ढेर सारी पाबंदी लगा देते हैं और लड़कों को खुले सांड की तरह छोड़ देते हैं I यही से असंतुलन पैदा होता हैI  जरूरत है बच्चों में सहयोग, दया भाव, सत्य के प्रति सम्मान का भाव पैदा करने कीI  क्योंकि ...
जहां पर सच दया सम्मान और ईमान रहता है,
वहीं जाकर के वह अल्लाह और भगवान रहता है,
निकाला है अगर तूने किसी के पांव का कांटा ,
तो यह तय है ते तेरे दिल में कोई इंसान रहता है II
 यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी सावित्रीबाई फुले को I
“जय हिंद, जय भारत”


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